उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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गोदान--मुंशी  समय-समय की परथा है और क्या! किसी में उतना तेज तो हो। बिस खाकर उसे पचाना तो चाहिए। वह सतजुग की बात थी, सतजुग के साथ गयी। अब तो अपना ...

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